एक मटका और गुलदस्ता साथ में खरीदते हैं.
घरमें लाते ही 50 रूपये का मटका अगर फूट जाएं तो हमें इस बात का दुःख होता हैं।
क्योंकि मटका इतनी जल्दी फूट जायेगा ऐसी हमें कल्पना भी नहीं थीं।
परंतु गुलदस्ते के फूल जो 200 रूपये के हैं, वो
शाम तक मुर्झा जाएं तो भी हम दुःखी नहीं होते।
क्योंकि ऐसा होने वाला ही हैं यह हमें पता ही था।
मटके की इतनी जल्दी फूटने की हमें अपेक्षा ही नहीं थीं तो फूटने पर दुःख का कारण बना।
परंतु फूलों से अपेक्षा नहीं थीं, इसलिए वे दुःख का कारण नहीं बनें।
इसका मतलब साफ़ हैं कि
जिसके लिए जितनी अपेक्षा ज़्यादा..
उसकी तरफ़ से उतना दुःख ज़्यादा..
और
जिसके लिए जितनी अपेक्षा कम,
उसकेलिए उतना ही दुःख भी कम।
घरमें लाते ही 50 रूपये का मटका अगर फूट जाएं तो हमें इस बात का दुःख होता हैं।
क्योंकि मटका इतनी जल्दी फूट जायेगा ऐसी हमें कल्पना भी नहीं थीं।
परंतु गुलदस्ते के फूल जो 200 रूपये के हैं, वो
शाम तक मुर्झा जाएं तो भी हम दुःखी नहीं होते।
क्योंकि ऐसा होने वाला ही हैं यह हमें पता ही था।
मटके की इतनी जल्दी फूटने की हमें अपेक्षा ही नहीं थीं तो फूटने पर दुःख का कारण बना।
परंतु फूलों से अपेक्षा नहीं थीं, इसलिए वे दुःख का कारण नहीं बनें।
इसका मतलब साफ़ हैं कि
जिसके लिए जितनी अपेक्षा ज़्यादा..
उसकी तरफ़ से उतना दुःख ज़्यादा..
और
जिसके लिए जितनी अपेक्षा कम,
उसकेलिए उतना ही दुःख भी कम।
Very true
ReplyDelete