Jul 13, 2019

Hanuman Chalisa

श्रीगुरु चरण् सरोजरज,
निजमनमुकुर सुधार ।
बरणौ रघुबर बिमल यश,
जो दायक फलचार ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके,
सुमिरौं पवन कुमार ।
बल बुद्धिविद्या देहु मोहिं,
हरहु कलेश विकार ॥

***
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ।
जै कपीस तिहुँलोक उजागर ॥1॥

रामदूत अतुलित बलधामा ।
अंजनि-पुत्र पवन-सुत नामा ॥2॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥3॥

कंचन बरण बिराज सुबेशा ।
कानन कुंडल कुंचित केशा ॥4॥

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥5॥

शंकर-सुवन केशरी-नन्दन ।
तेज प्रताप महा जग-वंदन ॥6॥

विद्यावान गुणी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥7॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
रामलषण सीता मन बसिया ॥8॥

सूक्ष्म रूपधरि सियहिं दिखावा ।
विकट रूप धरि लंक जरावा ॥9॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥10॥

लाय सजीवन लखन जियाये ।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥11॥

रघुपति कीन्ही बहुत बडाई ।
तुम मम प्रिय भरतहिसम भाई ॥ 12॥

सहस बदन तुम्हरो यश गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥ 13॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा ।
नारद शारद सहित अहीशा ॥ 14॥

यम कुबेर दिगपाल जहाँते ।
कवि कोविद कहि सकैं कहाँते ॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।
राम मिलाय राजपद दीन्हा ॥16॥

तुम्हरो मंत्र विभीषण माना ।
लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥17॥

युग सहस्र योजन पर भानू ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥ 18॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँधि गये अचरजनाहीं ॥ 19॥

दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥ 20॥

राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिन पैसारे ॥ 21॥

सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डरना ॥ 22॥

आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँकते काँपै ॥ 23॥

भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥ 24॥

नाशौ रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥ 25॥

संकट से हनुमान छुडावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥ 26॥

सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिनके काज सकल तुम साजा ॥ 27॥

और मनोरथ जो कोइ लावै ।
सोइ अमित जीवन फल पावै ॥ 28॥

चारों युग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥ 29॥

साधु संत के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥ 30॥

अष्टसिद्धि नव निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥ 31 ॥

राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥ 32॥

तुम्हरे भजन रामको पावै ।
जन्म जन्म के दुख बिसरावै ॥ 33॥

अन्त काल रघुपति पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥ 34॥

और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥ 35॥

संकट हरै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बल बीरा ॥ 36॥

जै जै जै हनुमान गोसाई ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाई ॥ 37॥

जोह शत बार पाठ कर जोई ।
छुटहि बन्दि महासुख होई ॥ 38॥

जो यह पढै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥ 39॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥ 40॥
***
पवनतनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप ।
रामलषन सीता सहित,
हृदय बसहु सुरभूप ॥
सीयावर राम चंन्द्र की जय ...
पवनसूत हनुमान की जय ...

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