श्रीगुरु चरण् सरोजरज,
निजमनमुकुर सुधार ।
बरणौ रघुबर बिमल यश,
जो दायक फलचार ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके,
सुमिरौं पवन कुमार ।
बल बुद्धिविद्या देहु मोहिं,
हरहु कलेश विकार ॥
***
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ।
जै कपीस तिहुँलोक उजागर ॥1॥
रामदूत अतुलित बलधामा ।
अंजनि-पुत्र पवन-सुत नामा ॥2॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥3॥
कंचन बरण बिराज सुबेशा ।
कानन कुंडल कुंचित केशा ॥4॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥5॥
शंकर-सुवन केशरी-नन्दन ।
तेज प्रताप महा जग-वंदन ॥6॥
विद्यावान गुणी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥7॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
रामलषण सीता मन बसिया ॥8॥
सूक्ष्म रूपधरि सियहिं दिखावा ।
विकट रूप धरि लंक जरावा ॥9॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥10॥
लाय सजीवन लखन जियाये ।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥11॥
रघुपति कीन्ही बहुत बडाई ।
तुम मम प्रिय भरतहिसम भाई ॥ 12॥
सहस बदन तुम्हरो यश गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥ 13॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा ।
नारद शारद सहित अहीशा ॥ 14॥
यम कुबेर दिगपाल जहाँते ।
कवि कोविद कहि सकैं कहाँते ॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।
राम मिलाय राजपद दीन्हा ॥16॥
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना ।
लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥17॥
युग सहस्र योजन पर भानू ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥ 18॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँधि गये अचरजनाहीं ॥ 19॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥ 20॥
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिन पैसारे ॥ 21॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डरना ॥ 22॥
आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँकते काँपै ॥ 23॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥ 24॥
नाशौ रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥ 25॥
संकट से हनुमान छुडावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥ 26॥
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिनके काज सकल तुम साजा ॥ 27॥
और मनोरथ जो कोइ लावै ।
सोइ अमित जीवन फल पावै ॥ 28॥
चारों युग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥ 29॥
साधु संत के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥ 30॥
अष्टसिद्धि नव निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥ 31 ॥
राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥ 32॥
तुम्हरे भजन रामको पावै ।
जन्म जन्म के दुख बिसरावै ॥ 33॥
अन्त काल रघुपति पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥ 34॥
और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥ 35॥
संकट हरै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बल बीरा ॥ 36॥
जै जै जै हनुमान गोसाई ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाई ॥ 37॥
जोह शत बार पाठ कर जोई ।
छुटहि बन्दि महासुख होई ॥ 38॥
जो यह पढै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥ 39॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥ 40॥
***
पवनतनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप ।
रामलषन सीता सहित,
हृदय बसहु सुरभूप ॥
सीयावर राम चंन्द्र की जय ...
पवनसूत हनुमान की जय ...
निजमनमुकुर सुधार ।
बरणौ रघुबर बिमल यश,
जो दायक फलचार ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके,
सुमिरौं पवन कुमार ।
बल बुद्धिविद्या देहु मोहिं,
हरहु कलेश विकार ॥
***
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ।
जै कपीस तिहुँलोक उजागर ॥1॥
रामदूत अतुलित बलधामा ।
अंजनि-पुत्र पवन-सुत नामा ॥2॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥3॥
कंचन बरण बिराज सुबेशा ।
कानन कुंडल कुंचित केशा ॥4॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥5॥
शंकर-सुवन केशरी-नन्दन ।
तेज प्रताप महा जग-वंदन ॥6॥
विद्यावान गुणी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥7॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
रामलषण सीता मन बसिया ॥8॥
सूक्ष्म रूपधरि सियहिं दिखावा ।
विकट रूप धरि लंक जरावा ॥9॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥10॥
लाय सजीवन लखन जियाये ।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥11॥
रघुपति कीन्ही बहुत बडाई ।
तुम मम प्रिय भरतहिसम भाई ॥ 12॥
सहस बदन तुम्हरो यश गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥ 13॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा ।
नारद शारद सहित अहीशा ॥ 14॥
यम कुबेर दिगपाल जहाँते ।
कवि कोविद कहि सकैं कहाँते ॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।
राम मिलाय राजपद दीन्हा ॥16॥
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना ।
लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥17॥
युग सहस्र योजन पर भानू ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥ 18॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँधि गये अचरजनाहीं ॥ 19॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥ 20॥
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिन पैसारे ॥ 21॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डरना ॥ 22॥
आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँकते काँपै ॥ 23॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥ 24॥
नाशौ रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥ 25॥
संकट से हनुमान छुडावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥ 26॥
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिनके काज सकल तुम साजा ॥ 27॥
और मनोरथ जो कोइ लावै ।
सोइ अमित जीवन फल पावै ॥ 28॥
चारों युग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥ 29॥
साधु संत के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥ 30॥
अष्टसिद्धि नव निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥ 31 ॥
राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥ 32॥
तुम्हरे भजन रामको पावै ।
जन्म जन्म के दुख बिसरावै ॥ 33॥
अन्त काल रघुपति पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥ 34॥
और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥ 35॥
संकट हरै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बल बीरा ॥ 36॥
जै जै जै हनुमान गोसाई ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाई ॥ 37॥
जोह शत बार पाठ कर जोई ।
छुटहि बन्दि महासुख होई ॥ 38॥
जो यह पढै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥ 39॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥ 40॥
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पवनतनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप ।
रामलषन सीता सहित,
हृदय बसहु सुरभूप ॥
सीयावर राम चंन्द्र की जय ...
पवनसूत हनुमान की जय ...
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