Nov 11, 2018

सहारे न तलाशे

एक बादशाह सर्दियों की शाम जब अपने महल में दाखिल हो रहा था तो एक बूढ़े दरबान को देखा जो महल के सदर दरवाज़े पर पुरानी और बारीक वर्दी में पहरा दे रहा था।

बादशाह ने उसके करीब अपनी सवारी को रुकवाया और उस ज़ईफ़ दरबान से पूछने लगा : 
"सर्दी नही लग रही ?"

दरबान ने जवाब दिया 
"बहुत लग रही है हुज़ूर ! मगर क्या करूँ, गर्म वर्दी है नही मेरे पास, इसलिए बर्दाश्त करना पड़ता है।"

"मैं अभी महल के अंदर जाकर अपना ही कोई गर्म जोड़ा भेजता हूँ तुम्हे।"

दरबान ने खुश होकर बादशाह को फर्शी सलाम किया और आजिज़ी का इज़हार किया।

लेकिन बादशाह जैसे ही महल में दाखिल हुआ, 
दरबान के साथ किया हुआ वादा भूल गया।

सुबह दरवाज़े पर उस बूढ़े दरबान की अकड़ी हुई लाश मिली और करीब ही मिट्टी पर उसकी उंगलियों से लिखी गई ये तहरीर भी : 
"बादशाह सलामत ! 
मैं कई सालों से सर्दियों में इसी नाज़ुक वर्दी में दरबानी कर रहा था, मगर कल रात आप के गर्म लिबास के वादे ने मेरी जान निकाल दी।

सहारे इंसान को खोखला कर देते है।
उसी तरह उम्मीदें कमज़ोर कर देती है, 
अपनी ताकत के बल पर जीना शुरू कीजिए, 
असल सहारा उस मालिक का है जो ज़िन्दगी में भी हमारे साथ है और मरने के बाद भी जिसकी रहमत हम को तन्हा नही छोड़ती