पानी को बर्फ में...
बदलने में वक्त लगता हैं..!
ढले हुए सूरज को...
निकलने में वक्त लगता हैं..!
थोड़ा धीरज रख...
थोड़ा और जोर लगाता रहे...!
किस्मत के जंग लगे दरवाजे को...
खुलने में वक्त लगता हैं..!
कुछ देर रुकने के बाद...
फिर से चल पड़ना दोस्त..!
हर ठोकर के बाद...
संभलने में वक्त लगता हैं..!
बिखरेगी फिर वही चमक...
तेरे वजूद से.. तू महसूस करना..!
टूटे हुए मन को...
संवरने में थोड़ा वक्त लगता हैं..!
जो तूने कहा..
कर दिखायेगा रख यकीन..!
गरजे जब बादल...
तो बरसने में वक्त लगता हैं..!
खुशी आ रही हैं...
और आएगी ही..! इन्तजार कर..!
जिद्दी दुख-दर्द को टलने में...
थोड़ा तो वक्त लगता हैं..
:- दिपक मिराणी
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