Jul 30, 2016
हरिवंशराय बच्चन की एक सुंदर कविता
*खवाहिश नही मुझे मशहूर होने की*।
*आप मुझे पहचानते हो बस इतना ही काफी है*।
*अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे*।
*क्यों कि जिसकी जितनी जरुरत थी उसने उतना ही पहचाना मुझे*।
*ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा भी कितना अजीब है*,
*शामें कटती नहीं, और साल गुज़रते चले जा रहे हैं*....!!
*एक अजीब सी दौड़ है ये ज़िन्दगी*,
*जीत जाओ तो कई अपने पीछे छूट जाते हैं*,
*और हार जाओ तो अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं*।
*बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर*...
*क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है*..
मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा*,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना*।।
ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है*
पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है*
जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने*
न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले* .!!.
एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली*..
वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे*..!!
सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से*..
पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला* !!!
सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब*....
बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता*
*जीवन की भाग-दौड़ में*
*क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है* ?
*हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है*..
*एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम और*
*आज कई बार बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है*..
*कितने दूर निकल गए*,
*रिश्तो को निभाते निभाते*..
*खुद को खो दिया हमने, अपनों को पाते पाते*..
*लोग कहते है हम मुस्कुराते बहोत है*,
*और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते*..
*खुश* *हूँ और* *सबको खुश* *रखता हूँ*,
*लापरवाह* *हूँ फिर भी सबकी परवाह*
*करता हूँ*..
*मालूम है कोई मोल नहीं मेरा, फिर भी*,
*कुछ अनमोल लोगो से रिश्ता रखता हूँ*...!
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